आज हमने क्रिया के बारे में बताया है की क्रिया किसे कहते हैं क्रिया के कितने प्रकार होते हैं. अकर्मक क्रिया किसे कहते हैं, सकर्मक क्रिया क्या है इन सभी के बारे में इस आर्टिकल में बताया गया है.
क्रिया किसे कहते हैं
क्रिया – जिन शब्दों से किसी कार्य का करना या होना समझ में आता है, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे- उठना, बैठना, पढ़ना, जाना, रोना, गाना आदि। क्रिया एक विकारी शब्द है जिसके रूप, लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के अनुसार बदलते हैं।
क्रिया शब्द के उदाहरण
खरगोश भागा।
रमा ने खाना खाया।
मंत्री नगर में आए।
पहले वाक्य में खरगोश के विषय में भागा का विधान किया गया है, अतः भागा‘ क्रिया है। दूसरे वाक्य में रमा ने खाना खाने का कार्य किया। अत: खाया क्रिया है। इसी प्रकार दूसरे वाक्य में आए’ शब्द के द्वारा मंत्री के विषय में विधान किया गया है, अत: ‘आए‘ क्रिया है।
रचना की दृष्टि से क्रिया के भेद
रचना की दृष्टि से क्रिया के सामान्यत: दो भेद हैं-
- सकर्मक क्रिया (Transitive)
- अकर्मक क्रिया (Intransitive)
सकर्मक क्रिया किसे कहते हैं
सकर्मक क्रिया वह क्रिया जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरी वस्तु या व्यक्ति अर्थात कर्म पर पड़े, सकर्मक क्रिया कहलाती है। उदाहरण-राघव खाना खाता है। यहाँ ‘राघव‘ कर्ता है। खाने के साथ उसका ‘कर्तृ‘ रूप से सम्बन्ध है।
प्रश्न है क्या खाता है ?’ उत्तर है-खाना। अतः खाना का खाने से सीधा सम्बन्ध है। अत: ‘खाना‘ कर्मकारक है। राघव के खाने का फल खाने’ पर, अर्थात् ‘कर्म‘ पर पड़ता है। अतः ‘खाना’ क्रिया सकर्मक है। कभी-कभी सकर्मक क्रिया में कर्म छिपा रहता है।
जैसे-(i) वह गाता है,
(ii) वह पढ़ता है।
(ii) वह सुनता है।
यहाँ क्रमश: गीत तथा पुस्तक छिपे हैं। तीसरे वाक्य में भी ‘गाना’ शब्द छुपा अर्थात् वह गाना सुनता है।
अकर्मक क्रिया किसे कहते हैं
अकर्मक क्रिया जिन क्रियाओं में कर्म का फल कर्ता पर ही सीमित रहे, वे अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। उदाहरण – मोर नाचता है। इसमें नाचना क्रिया अकर्मक है। ‘मोर‘ कर्ता है ‘नाचने‘ की क्रिया उसी के द्वारा पूरी होती है। अत: नाचने का फल भी उसी पर पड़ता है। इसलिए ‘नाचना’ क्रिया अकर्मक है।
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान-‘क्या‘,’किसे‘ या ‘किसको‘ आदि प्रश्न करने से होती है। यदि इन प्रश्नों का कुछ उत्तर वाक्य में प्राप्त हो तो क्रिया सकर्मक है। यदि उत्तर नहीं मिले तो क्रिया अकर्मक होगी। उदाहरणार्थ – मारना, पढ़ना, खाना, इन तीनों क्रियाओं में ‘क्या’, ‘किसे’ या ‘किसको’ लगाकर प्रश्न करने पर उनके उत्तर इस प्रकार होंगे-
(i) सुरेश ने राजू को मारा।
(ii) शीला ने स्वेटर बुन लिया।
(ii) रहीम ने सर्कस देख लिया।
(iv) श्याम ने खेत जोत लिया।
इन सभी उदाहरणों में क्रियाएँ सकर्मक हैं। उपरोक्त क्रियाओं में क्या या किसको प्रश्न वाक्य में करने पर पता चलता है कि सुरेश ने राजू को मारा। शीला ने स्वेटर बुना। रहीम ने सर्कस देखा तथा श्याम ने खेत जोता। उपरोक्त वाक्यों में क्या प्रश्न करने पर उत्तर प्राप्त होता है तो यह सकर्मक क्रिया के उदाहरण हैं।
कुछ क्रियाएँ सकर्मक और अकर्मक दोनों होती हैं। प्रसंग अथवा अर्थ के अनुसार इनके भेद का निर्णय किया जाता है। जैसे-
अकर्मक | सकर्मक |
उसका पैर खुजलाता है। | वह अपना पैर खुजलाता है। |
उसका जी ललचाता है। | ये वस्तुएँ उसका जी ललचाती हैं। |
वह चिढ़ा रही है। | वह तुम्हें चिढ़ा रही है। |
विशेष – “जिन धातुओं का प्रयोग अकर्मक और सकर्मक दोनों रूपों में होता है, उन्हें उभयविध धातु कहते हैं।”
क्रिया के भेद
द्विकर्मक क्रिया किसे कहते हैं
द्विकर्मक क्रिया कुछ क्रियाएँ एक कर्म वाली होती हैं और कुछ दो कर्म वाली। जैसे – राधा ने चित्र बनाया। इस वाक्य में कर्म एक ही है। मैं लड़कों को संस्कृत पढ़ाता हूँ में दो कर्म हैं-‘लड़कों को’ तथा ‘संस्कृत’।
संयुक्त क्रिया किसे कहते हैं
संयुक्त क्रिया – दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनने वाली क्रिया को संयुक्त क्रिया कहते हैं। बच्चा रो चुका, राजू रोने लगा। वह विद्यालय पहुँच गया। इन वाक्यों में ‘रो चुका‘, ‘रोने लगा‘ और ‘पहुँच गया‘ संयुक्त क्रियाएँ हैं। ‘विधि‘ और ‘आज्ञा‘ को छोड़कर सभी क्रिया पद दो या दो से अधिक क्रियाओं के योग से बनती हैं। किन्तु संयुक्त क्रिया इनसे भिन्न है।
इसके अतिरिक्त ‘सकर्मक‘ तथा ‘अकर्मक‘ दोनों प्रकार की संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
अकर्मक क्रिया से – भाग जाना, सो जाना, गिर जाना।
सकर्मक क्रिया से – सोच लेना, पत्र लिखना, भेज देना, किताब खरीद लेना, बचा लेना। वह चिढ़ा रही है।
संयुक्त क्रिया की एक विशेषता यह है कि उसकी पहली क्रिया प्रायः प्रधान होती है और दूसरी उसके अर्थ में विशेषता उत्पन्न करती है। जैसे – मैं गा सकता हूँ। इसमें ‘सकना‘ क्रिया से गाना क्रिया के अर्थ में विशेषता उत्पन्न करती है। हिन्दी में संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग अधिक होता है।
संयुक्त क्रियाओं के भेद
अर्थ के विचार से संयुक्त क्रिया के निम्नलिखित भेद होते हैं-
- आरम्भ बोधक
- समाप्ति बोधक
- अनुमति बोधक
- नित्यता बोधक
- निश्चय बोधक
- इच्छा बोधक
- अभ्यास बोधक
- शक्ति बोधक संयुक्त क्रिया
(1) आरम्भ बोधक – “जिस संयुक्त क्रिया से, कार्य के आरम्भ होने का बोध होता है, उसे आरम्भबोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।” जैसे- वह लिखने लगा, पानी बरसने लगा, श्याम खाने लगा, राम सोने लगा।
(2) समाप्ति बोधक – “जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता व्यापार की समाप्ति का बोध हो, वह ‘समाप्ति बोधक’ संयुक्त क्रिया है। जैसे-वह लड़का जा चुका है, राधा कपड़े सी चुकी, सीता पढ़ चुकी है। धातु के आगे ‘चुकना’ जोड़ने से समाप्तिबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
(3) अनुमति बोधक – “जिस संयुक्त क्रिया से कार्य करने की अनुमति देने का बोध हो, वह अनुमति बोधक संयुक्त क्रिया होती है।” जैसे-मुझे जाने दो। श्याम को आराम करने दो। यह क्रिया ‘देना’ धातु के योग से बनती है।
(4) नित्यता बोधक – “जहाँ कार्य की नित्यता, उसके बन्द न होने का भाव प्रकट हो वहाँ नित्यता बोधक संयुक्त क्रिया होती है।” जैसे-पारी बरस रहा है। धूप निकल रही है। पेड़ बढ़ता गया। मुख्य क्रिया के बाद ‘जाना’ या ‘रहना’ जोड़ने से नित्यता बोधक संयुक्त क्रिया बनती है।
(5) निश्चय बोधक – “जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य व्यापार की निश्चयता का ज्ञान हो उसे निश्चय बोधक संयुक्त क्रिया कहते हैं।” जैसे-वह बीच में ही बोल पड़ा’, ‘उसने कहा- मार बैलूंगा’, ‘वह गिर पड़ा, अब दे ही डालो।’ अब कह चुको ना। ऐसी क्रियाओं में पूर्णता और निश्चय का भाव वर्तमान है।
(6) इच्छा बोधक – इससे क्रिया के करने की इच्छा प्रकट होती है। जैसे-‘वह घर आना चाहता है।’ ‘सुरेश पढ़ना चाहता है’, ‘मैं खाना चाहता हूँ’। क्रिया के साधारण रूप में ‘चाहना’ क्रिया जोड़ने से इच्छा बोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती है।”
(7) अभ्यास बोधक – “इसमें क्रिया को करने के अभ्यास का ज्ञान होता है। सामान्य भूतकाल की क्रिया में करना’ क्रिया लगाने से अभ्यास बोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।”
(8) शक्ति बोधक संयुक्त क्रिया – “इसमें कार्य को करने की शक्ति का बोध होता है।” जैसे-‘मैं चल सकता हूँ।’ ‘मैं पढ़ सकता हूँ’। ‘वह बोल सकता है। इसमें सकना’ क्रिया जोड़ी जाती है।
सहायक क्रिया किसे कहते हैं
सहायक क्रिया जो क्रियाएँ मुख्य क्रिया के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करने में सहायक होती है वे सभी सहायक क्रियाएँ कहलाती हैं। हिन्दी में इन सहायक क्रियाओं का प्रयोग व्यापक अर्थ में होता है। इनमें परिवर्तन से ‘काल’ (समय) बदल जाता है।
जैसे – वह खाता है। मैंने पढ़ा थे। वे सुन रहे थे। तुम जगे हुए थे।
उपरोक्त उदाहरणों में खाना, पढ़ना, जगना, सुनना मुख्य क्रियायें हैं जबकि है था, हुए थे, रहे थे सहायक क्रियायें हैं।
नाम बोधक क्रिया किसे कहते हैं
संज्ञा अथवा विशेषण के साथ क्रिया जोड़ने से जो संयुक्त क्रिया बनती है, उसे ‘नाम बोधक क्रिया’ कहते हैं।” संज्ञा + क्रिया – खत्म करना, विशेषण + क्रिया – दु:खी होना, निराश होना।
विशेष – नाम बोधक क्रियाएँ, संयुक्त क्रियाएँ नहीं हैं।
पूर्णकालिक क्रिया किसे कहते हैं
जब कर्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी क्षण दूसरी क्रिया में प्रविष्ट हो जाता है तब पहली क्रिया पूर्वकालिक क्रिया कहलाती है।” जैसे-उसने नहाकर भोजन किया। इसमें नहाकर पूर्वकालिक क्रिया है क्योंकि इसमें नहाने की क्रिया की समाप्ति के साथ ही भोजन करने की क्रिया का बोध होता है।
क्रियार्थक संज्ञा
जब क्रिया संज्ञा की तरह व्यवहार में आए, तब वह क्रियार्थक संज्ञा कहलाती है।” जैसे – टहलना, स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। देश के लिए मरना कहीं श्रेष्ठ है।
क्रिया का पद परिचय
इसमें क्रिया का प्रकार, वाच्य, पुरुष, लिंग, वचन, काल और वह शब्द जिससे क्रिया का सम्बन्ध है, आदि शामिल हैं। उदाहरण – मैं लिखता हूँ। इसमें लिखता हूँ’ क्रिया है। इसका पदान्वय होगा – जाता हूँ-अकर्मक क्रिया, कर्तृवाच्य, सामान्य वर्तमान, उत्तम पुरुष, एकवचन, मैं इसका कर्ता।
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