विराम चिन्ह किसे कहते हैं, पूर्ण विराम, अल्प विराम | Viram chinh in hindi



Viram chinh in hindi- आज के इस लेख में हम जानेंगे की विराम चिन्ह किसे कहते हैं. विराम चिन्ह कितने होते हैं. पूर्ण विराम चिन्ह, अल्प विराम चिन्ह योजक चिन्ह तथा और भी चिन्हों के बारे में जानेंगे तो कृप्या आप धैर्य बनाये रखें और हमारे साथ बने रहे.

विराम चिन्ह किसे कहते हैं

विराम चिन्ह – विराम शब्द का अर्थ है – ठहराव। जीवन के संघर्ष में मानव को समय-समय ठहरना (विराम लेना) होता है। कार्य की निश्चित सफलता के लिए विराम या ठहराव अनिवार्य है। यह शब्द आराम का पर्यायवाची शब्द है। जीवन में पहले विराम होता है, तब विश्राम । मानव पहले रूकता है, फिर आराम करता है तथा आगे संघर्ष जारी रखने के लिये अपनी शक्ति तथा साहस का संचय करता है।

लेखन, मानव का विशेष मानसिक कार्य है। इस कार्य में लेखक व्यर्थ ही हाथ-पैर नहीं मारता अपितु पूर्व योजना के अनुसार कार्य के मध्य विश्राम भी करता रहता है। हमारी मानसिक दशा ही इसका एकमात्र कारण है। इसी प्रकार लेखन की दशा में भी विराम चिह्नों का प्रयोग अनिवार्य है। ऐसा न होने पर भाव अथवा विचार की स्पष्टता में बाधा पड़ेगी।

“अतः भाषा में विराम चिन्ह का प्रयोग पाठक के भाव बोध को सरल एवं सुबोध बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। भाव यह है कि वाक्य के सुन्दर गठन और विचारों की स्पष्टता के लिए इन विराम चिन्ह की उपयोगिता स्वीकार की गई है। प्रत्येक विराम चिन्ह पाठक और लेखक, दोनों की विशेष मानसिक दशा का द्योतक है। यह एक पड़ाव और ठहराव भी है।”

हिन्दी में प्रयुक्त विराम चिन्ह निम्नांकित हैं-

  1. पूर्ण विराम (Full Stop) (।)
  2. अल्प विराम (Comma) (,)
  3. योजक चिह्न (Hyphen) (-)
  4. प्रश्नवाचक चिह्न (Mark of Interrogation) ( ? )
  5. विस्मयादि बोधक (Sign of Exclamation) (!)
  6. उद्धरण चिह्न (Inverted Commas) (“”)

पूर्ण विराम चिन्ह (Full Stop) (।)

पूर्ण विराम का अर्थ है पूरी तरह रुकना या ठहरना। सामान्य दशा में वाक्य या विचार अंतिम दशा में पहुँचकर ठहर जाता है या विचार परिवर्तित होकर नवीन रूप धारण कर लेता है, तब इस चिन्ह का प्रयोग होता है। जैसे-यह गाय है। राम एक अच्छा लड़का है। वह साधु है। सीता सदैव कक्षा में प्रथम आती है। तुम गा रहे हो।
उपरोक्त सभी वाक्य स्वतंत्र हैं, उनका एक-दूसरे से कोई सम्बन्ध नहीं है। वे अपने में पूर्ण भी हैं। अतः प्रत्येक वाक्य के पूर्ण होने पर अंत में पूर्ण विराम का प्रयोग होता है।

अल्प विराम चिन्ह (Comma) (,)

अल्प विराम का प्रयोग सबसे अधिक होता है। अत: इसके प्रयोग से सम्बन्धित नियमों का पूर्ण ज्ञान आवश्यक है। इसका अर्थ है-“थोड़ी देर के लिए रुकना या ठहरना। अपनी रचना की अवधि में हर लेखक विभिन्न मानसिक स्थितियों से होकर गुजरता है। कुछ स्थितियों में लेखक को अल्प विराम का भी उचित प्रयोग करना पड़ता है।

अल्प विराम के प्रयोग की स्थितियाँ निम्नलिखित हैं-वाक्य में जब दो या अधकि समान पदों, वाक्यांशों तथा वाक्यों में संयोजक अव्यय ‘और’ की संभावना हो, तब वहाँ अल्प विराम का प्रयोग होता है। जैसे-

पदों में – कृष्ण, बलराम, कंस वध के बाद कारागार गए।

वाक्यों में – माधव रोज आता है, काम करता है और चला जाता है। यहाँ पर दो से अधिक पदों में पार्थक्य दिखाई देता है।

योजक चिन्ह (Hyphen) (-)

हिन्दी में अल्प विराम के बाद संयोजक चिन्ह (-) का अत्यधिक प्रयोग होता है। किन्तु इसके दुरुप्रयोग भी कम नहीं हुए। हिन्दी व्याकरण की पुस्तकों में इसके प्रयोग के सम्बन्ध में बहुत कम लिखा गया है। अतः इसके प्रयोग की विधियाँ स्पष्ट नहीं होती। परिणाम यह है कि हिन्दी के लेखक इसके साथ मनमाना व्यवहार करते है। हिन्दी व्याकरण में इस पर निश्चित नियमों का अभाव है।

प्रश्न यह है कि संयोजक चिन्ह के प्रयोग की आवश्यकता तथा उपयोगिता हिन्दी में क्या है ? इसका प्रयोग क्यों किया जाए। उत्तर स्पष्ट है कि योजक चिन्ह वाक्य में प्रयुक्त शब्द और उनके अर्थ को हर प्रकार स्पष्ट कर देता है। योजक शब्दों का उचित ध्यान न रखने की दशा में अर्थ एवं उच्चारण सम्बन्धी अनेक भूलें हो सकती हैं। योजक चिन्ह मूलत: वाक्य में उत्पन्न होने वाली अर्थ, उच्चारण तथा संगठन सम्बन्धी होने वाली त्रुटियों को दूर करने का एक साधन है।

प्रश्नवाचक चिन्ह (?)

इस चिह्न का प्रयोग निम्नलिखित अवस्था में होता है –

जहाँ प्रश्न पूछे जाने का आभास होता है.

जहाँ स्थिति अनिश्चित हो – आप शायद दिल्ली में रहते हैं ?

व्यंग्योक्तियों में – (क)  रिश्वत इस युग का शिष्टाचार है, है न ?
(ख) जहाँ थोथे तथा ओछे विचार भरे हों वहाँ विवेक का कोई काम नहीं है, है न ?

विस्मयादि बोधक चिन्ह  (!)

विस्मयादि बोधक (!) का प्रयोग हर्ष, विषाद, विस्मय, घृणा, आश्चर्य, करुणा, भय, इत्यादि भाव व्यक्त करने के लिए निम्नलिखित दशाओं में होता है-

(i) आह्लाद मूल शब्दों, पदों तथा वाक्यों के अंत में इसका प्रयोग होता है। जैसे-वाह ! तुमने खूब काम किया।

(ii) अपने से बड़े को सादर सम्बोधित करने में इस चिह्न का प्रयोग होता है-हे भोले नाथ ! तुम मेरा दुःख दूर करो। हे ईश्वर ! सबका भला हो। हे पिताजी ! मुझे आशीर्वाद दीजिये।

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